स्मृति शेष : दिनेश जोशी - खिलखिलाती स्मृतियां
उससे मेरी दोस्ती कब और कैसे हुई, कुछ याद नहीं, और इसकी कोई जरूरत भी नहीं। हां, लेकिन यह कभी नहीं भूला जा सकता कि क्या खूब दोस्ती थी, क्या खूब समझ! हमने नईदुनिया में बरसों साथ काम किया, ...वहीं ये...
View Articleसंस्मरण : स्मृतियों में बसी है कलाम से वह मुलाकात
23 अप्रैल 2003 की सुबह राष्ट्रपति भवन से एक फोन आया। दूरभाष के दूसरी तरफ से आवाज आई, मैं राष्ट्रपति का प्रेस सचिव एमएम खान बोल रहा हूं। आज आप क्या कर रहे हैं? मैंने कहा, कुछ विशेष नहीं। हां, आज मेरा...
View Articleशास्त्रीय गायिका वसुंधरा कोमकली : स्मृति शेष
पंडित देवधर की सुयोग्य शिष्या और बेटी वसुंधरा ताई ग्वालियर से देवास आने के बाद मालवा में ऐसी रच-बस गई कि यहां के लोग उनके घर के लोग हो गए, वे देवास, इंदौर और उज्जैन के हर घर में पहचानी जाने लगी, देवास...
View Articleअटल थे, अटल हैं, अटल रहेंगे : अंतरंग संस्मरण
वे साधारण परिवार में जन्मे, साधारण से प्राइमरी स्कूल में पढ़े और साधारण से प्राइमरी स्कूल टीचर के बच्चे हैं। उनके पिता का नाम था कृष्णबिहारी वाजपेयी और दादा थे पंडित श्यामलाल वाजपेयी। उन्होंने सारे देश...
View Articleमहाश्वेता देवी संस्मरण : भूख से बढ़कर कोई पढ़ाई नहीं होती
बंगाल की हमारी बहुत प्रिय लेखिका और कार्यकर्ता महाश्वेता दी ने सदियों से पीड़ित जनजातियों के लिए अपना सारा जीवन और लेखन समर्पित कर दिया। उनका जाना बहुत सी यादों को ताजा कर गया।
View Articleयात्रा संस्मरण : सफर..
हम लोग लखनऊ से देहरादून वापस जा रहे थे। परिस्थिति कुछ ऐसी बनी कि मेरे और पतिदेव के कोच अलग-अलग हो गए। पति का कोच आगे और मेरा डिब्बा दो कोच छोड़ कर था। मेरे साथ मेरा दो महीने का बेटा भी था।
View Articleसंस्मरण : उसकी उम्र बढ़ गई
गर्मी के दिनों में छत पर सोया था। सपने में देखा की गर्मियों की छुट्टियों में श्यामलाल के यहां उनकी साली आई। श्यामलाल की पत्नी की आवाज बहुत ही सुरीली थी।
View Articleएक प्रयास जिंदगी का...
मेरे ख्याल से साहस का कोई काम केवल शारीरिक क्षमता से ही ताल्लुक नहीं रखता, बल्कि मानसिक शक्ति से किसी को उज्जवल भविष्य का रास्ता दिखाना, मानसिक संबल देना, बिना किसी नतीजे की चिंता किए भी साहस का काम हैं।
View Articleस्मृतियों के झरोखों से उठता गंधर्व राग
कुमार गंधर्व जी की 'उड़ जाएगा हंस अकेला... बोर चेता.. झीनी-झीनी चदरिया... सुनता है गुरु ज्ञानी... रचनाएं ऐसी है जो बरबस ही बांध लेती है। उनके गायन की एक खास शैली थी ....
View Articleसंस्मरण : बारिश का वो दिन...
बात उन दिनों की है जब मेरे पापा, ऑडिनेंस फैक्ट्री, कानपुर में कार्यरत थे। फैक्ट्री के ही कैंपस में हमें बड़ा-सा घर मिल गया था। उस दिन हम तीनों भाई-बहन मम्मी के साथ नानी के घर गए थे। मां ने उस दिन नानी...
View Articleचंद्रकांत देवताले : मुश्किल है उनकी तरह सरल-तरल होना
चंद्रकांत देवताले, क्या यह सिर्फ एक नाम था किसी वरिष्ठतम कवि का ....इस नाम के साथ उभरती है एक निहायत ही मासूम से व्यक्ति की याद, एक बेहद आत्मीय से सच्चे सरल इंसान की याद, मुझे याद है उनकी पहली और अंतिम...
View Articleस्मृति शेष : 'जबकि अगस्त दस्तक दे रहा था'
अकविता की कठिन अराजकता से मोहमुक्त होकर समकालीन हिन्दी कविता में अपनी बेहद खास पहचान बनाने वाले धूमिल और जगूड़ी के साथ-साथ चन्द्रकांत देवताले का भी अपना महत्वपूर्ण स्थान सुनिश्चित है।
View Articleसंस्मरण : मैं पानी में गुट्ट-गुट्ट कर रहा था...
शानदार मोबाइल, टेबल पर कम्प्यूटर, गोदी में लैपटॉप, चांदी-सी चमकती रेशमी सड़कों पर चमचमाती हुईं कारें, आधुनिक सुविधाओं से लैस शताब्दी और राजधानी एक्सप्रेस जैसी रेलगाड़ियां! आज से 60 साल पहले इनकी कल्पना...
View Articleअलविदा नीरज : हम तो गीत गाकर ही उठेंगे....
नीरज ने जिस कोमलता और रोमांस को फूलों के शबाब की तरह घोला, दिल की कलम से दर्शकों को जो इतनी नाजुक पाती लिखी वह कई कई सदियों तक अविस्मरणीय रहेगी।
View Articleअटल थे, अटल हैं, अटल रहेंगे : अविस्मरणीय संस्मरण
मैं अटल तो हूं पर 'बिहारी' नहीं हूं। तब लोगों ने इसे अजीब ढंग से लिया था। लोगों को लगा कि वे 'बिहार' का अपमान कर रहे हैं। वस्तुत: उन्होंने कहा था कि असल में उनके पिता का नाम 'वसंत-विहार',...
View Articleअलविदा नीरज : हम तो गीत गाकर ही उठेंगे....
नीरज ने जिस कोमलता और रोमांस को फूलों के शबाब की तरह घोला, दिल की कलम से दर्शकों को जो इतनी नाजुक पाती लिखी वह कई कई सदियों तक अविस्मरणीय रहेगी।
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मैं अटल तो हूं पर 'बिहारी' नहीं हूं। तब लोगों ने इसे अजीब ढंग से लिया था। लोगों को लगा कि वे 'बिहार' का अपमान कर रहे हैं। वस्तुत: उन्होंने कहा था कि असल में उनके पिता का नाम 'वसंत-विहार',...
View Articleशहीद भगत सिंह से जुड़ा एक मार्मिक संस्मरण : उस दिन लाहौर की जनता सड़क पर उतर...
चाचा ने कहा -'तुझे पता नहीं, आज सुबह भगतसिंह को फिरंगियों ने फाँसी दे दी है। भगतसिंह को वहाँ का बच्चा-बच्चा जानता था। लोग गुस्से से इधर-उधर बौखलाए से घूम रहे थे और इस फिराक में थे कि कोई पुलिसवाला दिखे...
View Articleअलविदा नीरज : हम तो गीत गाकर ही उठेंगे....
नीरज ने जिस कोमलता और रोमांस को फूलों के शबाब की तरह घोला, दिल की कलम से दर्शकों को जो इतनी नाजुक पाती लिखी वह कई कई सदियों तक अविस्मरणीय रहेगी।
View Articleअटल थे, अटल हैं, अटल रहेंगे : अविस्मरणीय संस्मरण
मैं अटल तो हूं पर 'बिहारी' नहीं हूं। तब लोगों ने इसे अजीब ढंग से लिया था। लोगों को लगा कि वे 'बिहार' का अपमान कर रहे हैं। वस्तुत: उन्होंने कहा था कि असल में उनके पिता का नाम 'वसंत-विहार',...
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